गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण को क्यों लगाते हैं 56 तरह के भोग

  • 2023-03-16
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अन्नकूट का त्यौहार कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। अन्नकूट का त्यौहार उत्तर भारत में मुख्य रुप से ब्रज मंडल के सभी स्थलों पर उत्साह एवं भक्ति के साथ मनाते हैं। आज के समय में अन्नकूट का पर्व आंचलिक संस्कृति से आगे बढ़ते हुए अब अधिकांश स्थानों पर मनाया जाता है और इस दिन भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख महाभोज का भोग लगाया जाता है। 56 पकवानों से निर्मित यह अन्नकूट प्रेम एवं सहचर्य की प्रवृत्ति को जन्म देता है। अन्नकूट का समय प्रकृति के प्रति आदर एवं सम्मान का समय होता है। इस दिन में गाय व दुधारू पशुओं की पूजा की जाती है इसके साथ ही कृषी से निर्मित वस्तुओं को पूजा हेतु उपयोग में लाया जाता है तथा इन सभी को भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया जाता है। 

अन्नकूट पूजा से धन धान्य की होती है वृद्धि 

अन्नकूट पूजा का समय प्रकृति व प्रकृति से प्राप्त जीवनदायी भोज्य पदार्थों का पूजा का समय होता है। अन्न के प्रति जो श्रद्धा का स्वरुप है वह हमें इस त्यौहर में मुख्य रुप से देखने को मिलता है। इस शुभ अवसर पर कुल मिलाकर 56 प्रकार के पकवानों को तैयार किए जाने का विधान भी है। इस दिन विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं ओर हर पदार्थ की उपयोगिता जीवनदायिनी ही होती है इस में उपयोग होने वाले अनाज द्वारा शक्ति व आरोग्य की प्राप्ति होती है। घर पर इस दिन बनाए गए पकवानों द्वारा भगवान की पूजा करने से उस घर में कभी अनाज की कमी नहीं होती है धन एवं धान्य की कृपा सदैव बरसती है।

अन्नकूट का समय एक तरह से सामूहिक भोज का समय भी होता है जब लोग एक दूसरे के साथ मिलकर जीवन के सुख का उपभोग करते हैं ओर इस प्रकार लोगों के मध्य प्रेम एवं सहभागिता की स्थिति भी मजबूत होती है। यह पर्व लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का भी काम करता है और हमारे भीतर मानवता, प्रेम एवं परोपकारिता के गुणों का विकास भी होता है। 

काशी और अन्नकूट संबंध 

काशी में स्थिति देवी अन्नपूर्णा को समस्त जनों की क्षुधा शांति करने वाली देवी कहा जाता है। माता के आशीर्वाद से ही समस्त प्राणियों को भोजन प्राप्त होता है। अन्नकूट त्यौहार/Annakoot Festival पर मुख्य रुप माता अन्नपूर्णा जी का भी पूजन होता है और माता को भोग लगाने हेतु कई तरह के पकवान भी निर्मित किए जाते हैं जिन्हें प्रसाद स्वरूप भक्तों में वितरित किया जाता है। इस विशेष दिवस पर माता पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप को भी विशेष दिन के रुप में पूजा जाता है तथा अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है। 

अन्नकूट पर होती है गोवर्धन पूजा 

अन्नकूट उत्सव पर मंदिरों में कई तरह के व्यंजनों का निर्माण होता है जिसे भगवान को भोग लगा कर समस्त लोगों में बांटा जाता है। इसी के साथ लोग घरों में भी कई तरह के पकवान बनाते हैं तथा गोबर द्वारा गोवर्धन पर्वत बना कर धूप, दीप, चंदन तथा पुष्प इत्यादि से पूजन होता है। पर्वत के समीप श्री कृष्ण की जी प्रतिमा भी रखी जाती है। इस पूजा में गायों की भी रोली, चावल, चंदन द्वारा पूजा होती है। पूजा उपासना के पश्चात अन्नकूट को नैवेद्य के रुप में उपयोग किया जाता है। 

बलि पूजा: इस दिन को कुछ स्थानों पर बलि पूजा के रुप में भी मनाया जाता है जिसमें श्री विष्णु जी के वामन स्वरुप का पूजन होता है। अन्नकूट पर्व समय में  गाय-बैल पशु की पूजा विशेष रुप से समृद्धिदायक होती है।

 

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अन्नकूट: जब श्री कृष्ण ने किया इंद्र का अभिमान शांत 

अन्नकूट का पर्व एक श्री कृष्ण व इंद्र के साथ संबंधित माना गया है। पौराणिक कथा अनुसार कृष्ण नें जब देखा कि गांव में चारों ओर उत्सव का माहौल है और लोग अपने अपने घरों में कई तरह के पकवान बना रहे हैं और मांगलिक गीतों को गा रहे थे तब कृष्ण ने अपनी माता यशोदा जी से उत्सव के बारे में जानना चाहा तो माता ने उन्हें बताया की आज के दिन इंद्र देव की पूजा की जाती है क्योंकि इंद्र देव जो वर्षा करते हैं उससे पृथ्वी पर अनाज उगता है और उस अनाज को खाकर ही गायें भी दूध देती हैं और हम सभी को कई तरह के खाने की चीजें मिलती हैं।

इस पर श्री कृष्ण जी ने अपनी माता को कहा कि ऐसे में तो हमें गोवर्धन की पूजा/Govardhan Puja पहले करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो उसी पर विचरण करती हैं और उस स्थान पर उगने वाला अनाज हम भी प्राप्त करते हैं तो इंद्र से पूर्व तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। माता यशोदा जी को उनकी ये बात अत्यंत ही अच्छी लगी तथा सभी गांव वालों ने भी इस बात को जब सुना तो उन्हें भी कृष्ण का ये विचार अच्छा लगा। तब सब गांव वालों ने इंद्र की उपेक्षा करके गोवर्धन को पहले पूजने का अनिर्णय किया ऐसे में इंद्र देव इस कृत्य से नाराज हो उठते हैं ओर गांव वालों पर वर्षा का प्रकोप करते हैं। 7 दिन लगातार वर्षा होती है तब श्री कृष्ण भगवान गोवर्धन पर्वत को उठा कर सभी गांव वालों व पशु पक्षियों की रक्षा करते हैं और इस प्रकार, अंत में देवराज इन्द्र को अपनी भूल का एहसास होता है और उसका अभिमान नष्ट हो जाता है और इंद्र देव भी गोवर्धन पर्वत को नमस्कार करते हैं और उस दिन वर्षा की समाप्ति होती है और वातावरण पुन: सुंदर एवं रमणीय हो उठता है। तब सभी गांव वासी हर्ष व सुख पाते हैं और इस दिन को अन्नकूट के रुप में मनाया जाने लगा। इस दिन विशेष रुप से इंद्र, अग्नि, वर्षा, समेत गोवर्धन पूजा की जाती है तथा अन्नकूट का निर्माण किया जाता है। 

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