कथा के बिना क्यों पूर्ण नहीं होता रमा एकादशी का व्रत?

  • 2023-03-02
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रमा एकादशी कब और क्यों मनाई जाती हैं? 

कार्तिक मास में पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी का नाम लक्ष्मी जी के नाम पर रखा गया है। माँ लक्ष्मी जी का एक नाम रमा भी है। रमा एकादशी/Rama Ekadashi पर विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की अराधना भी की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने व कथा आदि पढ़ने-सुनने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। एकादशी का व्रत सर्वथा सभी कष्टों से मुक्ति दिलवाने वाला है और रमा एकादशी का व्रत मुख्यतः धन-वैभव की प्राप्ति करवाता है। दिवाली/Diwali से पहले पड़ने वाली इस एकादशी पर विधि विधान से व्रत व पूजा आदि करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन मां लक्ष्मी जी को तुलसी पत्र अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। रमा एकादशी व्रत/Rama Ekadashi Vrat बिना कथा के सम्पूर्ण नहीं माना जाता है। इस दिन व्रत कथा अवश्य ही पढ़नी या सुननी चाहिए।

रमा एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

रमा एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अमावस्या है जो दिवाली व धनतेरस/Dhanteras से पहले आती है। रमा एकादशी का अपना धार्मिक महत्व है और महालक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए यह एकादशी अत्यंत प्रभावी मानी गयी है। चातुर्मास/Chaturmas की यह अंतिम एकादशी होती है इसके बाद देवउठनी एकादशी/Dev Uthani Ekadashi आती है और चातुर्मास का अंत हो जाता है। रमा एकादशी के व्रत की कथा का बहुत अधिक महत्व है जिसे सुने बिना रमा एकादशी का व्रत पूरा नहीं माना जाता। रमा एकादशी के व्रत/Rama Ekadashi Vrat से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन के उपवास से ही माँ लक्ष्मी की आराधना शुरू हो जाती है जो दिवाली तक चलती है। लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए यह अत्यंत शुभ है। 

कब है रमा एकादशी?

साल 2023 में रमा एकादशी 08 नवंबर को पड़ रही है। शुक्रवार को यह एकादशी पड़ने से माँ लक्ष्मी की आराधना के लिए यह और भी शुभ हो गयी क्योंकि ज्योतिष में शुक्रवार माँ लक्ष्मी जी का दिन माना गया है।

रमा एकादशी का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी का पूजन करने से सभी मनोकानाओं की पूर्ति होती है। घर से दुख और दरिद्रता दूर होती है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। रमा एकादशी का व्रत/Rama Ekadashi Vrat सभी तरह की आर्थिक समस्याओं को दूर करने वाला व्रत है। इस व्रत से वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। 

रमा एकादशी की पूजन विधि

रमा एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पूजन के लिए सबसे पहले एक चौकी पर पीले रंग का आसन बिछा लें व भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी की मूर्ति की स्थापना करें। भगवान विष्णु को हल्दी मिश्रित जल चढ़ा कर अभिषेक करें। उन्हें धूप, दीप, और चंदन का टीका लगाएं। एकादशी के पूजन में पीले रंग का विशेष महत्व है। फिर विष्णु जी को पीले रंग के फूल और वस्त्र अर्पित करें और मां लक्ष्मी जी को लाल या गुलाबी वस्त्र व फूल चढ़ाएं। गुड़ और चने की दाल का भोग लगाएं और व्रत कथा का पाठ करना बलकुल ना भूलें। पूजन का अंत लक्ष्मी जी की आरती पश्चात करें।

रमा एकादशी शुभ पूजा मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ: 08 नवंबर, सुबह 08:23 से

एकादशी तिथि समाप्त: 09 नवंबर, सुबह 10:41 तक

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रमा एकादशी व्रत कथा 

एक नगर में प्रतापी राजा मुचुकुंद और उनकी पुत्री चंद्रभागा रहतें थे। उसका विवाह शोभन नामक व्यक्ति के साथ हुआ। शोभन का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वह एक समय भी बिना खाएं नहीं रह सकता था। कार्तिक के महीने में शोभन एक बार पत्नी के साथ ससुराल गया। तभी रमा एकादशी आ गई और चंद्रभागा के राज्य में सभी ने रमा एकादशी का व्रत/Rama Ekadashi Vrat किया। शोभन को भी यह व्रत रखने के लिए कहा गया। पर शोभन व्रत करने में असमर्थ था। इस बात का उसने ज़िक्र अपनी पत्नी चंद्रभागा से किया, चंद्रभागा ने उसे राज्य से बाहर जाने का आग्रह किया क्योंकि राज्य में सभी लोग ये व्रत/Vrat रखते हैं यहां तक कि जानवर भी अन्न ग्रहण नहीं करते। लेकिन शोभन ने बाहर जाने से इंकार करते हुए व्रत करने की ठान ली लेकिन भूख-प्यास के कारण उसने आपना प्राण त्याग दिए। 

चंद्रभागा सती होना चाहती थी लेकिन पिता के आग्रह व भगवान विष्णु में गहरी आस्था के कारण वह अपने पिता के घर रहकर ही एकादशी के व्रत करने लगी।  

उधर रमा एकादशी व्रत के प्रभाव/Vrat ka Prabhav से शोभन को स्वर्ग में जगह मिली और एक अद्वितीय और महान साम्राज्य प्राप्त किया। भगवान विष्णु की कृपा से उसे मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण देवपुर नाम का नगर प्राप्त हुआ। उन्हीं दिनों मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था और घूमते-घूमते वह शोभन के राज्य में आ पहुंचा। शोभन को देख वह ब्राह्मण उसे पहचान गया। उसने पूछा कि रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग देने के उपरान्त आप कैसे जीवित हैं? ऐसा विचित्र और सुंदर नगर आपको कैसे मिला? इस पर शोभन ने कहा कि यह सब कार्तिक माह/Kartik Maas के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है जिससे मुझे यह सुंदर नगर प्राप्त हुआ है। लेकिन ये अस्थिर है। ब्राह्मण ने पूछा कि यह अस्थिर क्यों है और इसे स्थिर कैसे बनाया जा सकता है? ब्राह्मण की बात का जवाब देते हुए शोभन ने बताया कि मैंने वह व्रत विवश होकर श्रद्धारहित किया था जिसके कारण मुझे ये अस्थिर नगर प्राप्त हुआ। राजा मुचुकुंद की पुत्री चंद्रभागा इसे स्थिर बना सकती है.

ये सारी बातें ब्राह्मण ने नगर लौट कर चंद्रभागा से कही। चंद्रभागा के कहने पर ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम ले गया। चंद्रभागा मंत्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई. शोभन ने पत्नी चंद्रभागा को देख अत्यंत प्रसन्न हुआ। चंद्रभागा ने राजा शोभन से कहा कि हे स्वामी जब मैं अपने पिता के घर आठ वर्ष की थी तब ही से मैं सविधि एकादशी का व्रत कर रही हूं और उन्हीं व्रतों के प्रभाव से यह नगर स्थिर हो जाएगा। उसके पश्चात वे दोनों सुखपूर्वक रहने लगे।

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