शरद पूर्णिमा पर करते हैं प्रभु भी पृथ्वी पर वास

  • 2023-03-15
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आश्विन (क्वार) मास की पूर्णिमा तिथि एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय होता है, क्योंकि यह वही समय होता है, जब शरद पूर्णिमा/Sharad Purnima मनाई जाती है। इस दिन को आश्विन पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग में यह समय सबसे प्रसिद्ध पूर्णिमाओं में से एक होता है। सभी पूर्णिमा किसी खास महत्व के साथ संबंधित होती है, लेकिन इस पूर्णिमा को कई नामों और विशेषताओं से संबंधित माना गया है। यह एक ऐसी कड़ी है जो कई पर्वों को एक साथ लाती है, तथा इस पूर्णिमा में आने वाले सभी उत्सव किसी न किसी लोक परंपराओं, पौराणिक कथाओं एवं इतिहास से संबंधित कथाओं से जुड़े होते हैं।

शरद का समय ही प्रकृति की अनुपम छटा का अद्भुत परिदृश्य होता है। यह वह नयनाभिराम समय होता है, जब प्रकृति सृष्टि के स्वरूप के सबसे सुंदर पहलू के साथ रुबरु होती दिखाई देती है। शरद पूर्णिमा की सुंदरता को रामायण, महाभारत, पुराणों इत्यादि में भी वर्णित किया गया है और लोक साहित्य में तो इस पर असंख्य वर्णन प्राप्त होते हैं। शरद पूर्णिमा का ज्योतिष/Astrology, धार्मिक, आध्यात्मिक सभी में एक समान महत्व दृष्टिगोचर होता है।

 

शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा होता है सोलह कलाओं से पूर्ण

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का स्वरुप पूर्ण तो होता ही है अपितु चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से संपूर्ण भी होता है। इस तथ्य के विषय में कई ग्रंथों में उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। वर्ष भर में आने वाली इसी पूर्णिमा के समय पर ही चंद्रमा अपनी सभी कलाओं को पृथ्वी पर आलोकित करता है और इसी दिन चंद्रमा का स्वरुप अत्यंत उज्जवल एवं शीतलता प्रदान करने वाला होता है।

प्रत्येक जीवन में इन कलाओं का कुछ अंश अवश्य मौजूद माना गया है और जब यह सभी कलाएं एक साथ एकत्रित होकर किसी के भीतर समाहित होती हैं तो वह जीवन अपनी पराकाष्ठा को पाता है। उस समय जीवन सिर्फ स्वयं हेतु कल्याणकारी नहीं होता अपितु समस्त सृष्टि के लिए वह कल्याण का कारक बन जाता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण जी सोलह कलाओं से संपूर्ण थे और राम भगवान को 12 कलाओं से पूर्ण माना गया है और इन सभी का मानव जीवन एवं सृष्टि पर प्रभाव सभी के समक्ष प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित होता है।

शरद पूर्णिमा की अमृत वर्षा 

शरद पूर्णिमा से संबंधित एक अन्य मान्यता अत्यंत ही प्रचलित है की इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। यह अमृत दर्शाता है की जीवन के संचालन में चंद्रमा अपनी ऊर्जा द्वारा किस प्रकार सभी का पोषण करता है। चंद्रमा की रोशनी औषधीय गुणों से युक्त होती है जो शरीर और आत्मा को भी तृप्ती प्रदान करने वाली होती है। इस दिन का लाभ उठाने के लिए चावल एवं दूध से निर्मित मिष्ठान खीर बनाई जाती है जिसे शरद रात्रि की पूर्णिमा के दिन संपूर्ण रात्रि चंद्रमा की चांदनी में रखा जाता है, जिसमें से अमृत उस खीर में समाहित हो जाता है और अगले दिन प्रात:काल उसे प्रसाद रुप में ग्रहण किया जाता है, जो शरीर को स्वस्थ व अमृत लाभ प्रदान करने वाला होता है।

पर्वों का मेला शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा एक ऐसा समय है, जो कई सारे पर्वों को मनाने का समय होता है। इस दौरान चारों तरफ भक्ति एवं उत्साह का माहौल दिखाई देता है।

कोजागिरी व्रत

इस दिन को कोजागर पूर्णिमा/Kojagiri Purnima के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। कोजागर पूर्णिमा का व्रत आर्थिक उन्नति प्रदान करता है और जीवन में सुख समृद्धि को लाता है। मान्यताओं के अनुसार कोजागर पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन होता है और धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी संपूर्ण रात्रि पृथ्वी पर विचरण करती हैं तथा सभी को शुभाशीष प्रदान करती हैं। इस कारण से इस दिन भक्तों द्वारा रात्रि जागरण का कार्य किया जाता है। देवी स्त्रोत एवं भजन कीर्तन संपूर्ण रात्रि होते हैं और देवी सभी भक्तों को धन समृद्धि एवं सुखी जीवन का वरदान प्रदान करती हैं।

रास पूर्णिमा – इस दिन को रास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है। यह ब्रज मंडल में मुख्य रूप से मनाई जाने वाला पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन गोपियों के साथ महारास हासिल किया था। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का पूजन होता है। रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है। भक्ति गीत गाए जाते हैं, भक्ति एवं प्रेम का अद्भुत रंग देखने को मिलता है।

वाल्मीकि जयंती – इस शुभ दिवस को रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मीकि जयंती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। श्री राम जी के जीवन एवं उनके आदर्शों को सभी के समक्ष प्रस्तुत करने वाले महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती को संपूर्ण भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

अश्विन पूर्णिमा उत्सव – शरद पूर्णिमा का दिन आश्विन पूर्णिमा का समय है। इस दिन अश्विन की समाप्ति होती है तथा कार्तिक मास से जुड़े कार्यों का आरंभ होता है। इसलिए कुछ लोग आश्विन मास की पापांकुशा एकादशी से कार्तिक स्नान एवं कार्तिक महात्म्य से जुड़े कार्यों का आरंभ करते हैं तो दूसरी ओर कुछ स्थानों पर आश्विन पूर्णिमा के दिन से कार्तिक स्नान एवं अन्य धार्मिक कार्यों का आरंभ हो जाता है। आश्विन पूर्णिमा कई संदर्भों एवं मान्यताओं से परिपूर्ण होती है। इस कारण से इसका आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व भी बहुत होता है।

शरद पूर्णिमा का पूजन कैसे किया जाए

शरद पूर्णिमा का पर्व भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग रूप से मनाया जाता है। इस समय अलग अलग तरह से पूजा पाठ एवं अनुष्ठान कार्य संपन्न होते हैं। इस समय पर मुख्य रुप से स्नान दान एवं जप-ध्यान पूजा की अत्यंत महत्ता होती है। पूर्णिमा के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान इत्यादि कार्यों से निवृत होकर पूजा, व्रत-उपवास इत्यादि का संकल्प धारण करते हुए दिन का आरंभ करना उत्तम होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, श्री विष्णु, श्री गणेश, इंद्र देव, चंद्र देव सभी का पूजन किया जाता है। पूजा में खीर का भोग लगाना उत्तम होता है। इसके साथ दान इत्यादि कार्यों को भी किया जाता है। मंत्रों का जाप, सत्यनारायण कथा, पूर्णिमा कथा/Purnima Vrat इत्यादि कार्य संपन्न करना अति शुभ फलदायी होता है। शरद पूर्णिमा एक अत्यंत ही शुभ समय होता है सच्चे मन एवं भाव से की जाने वाली प्रार्थना सहजता से प्रभु स्वीकार करते हैं। इसलिए इस दिन शुद्ध मन से किया गया ध्यान-पूजन अवश्य ही सार्थक होता है।

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